
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट के मामले में अभूतपूर्व कदम उठाते हुए 72 वर्षीय महिला वकील को डिजटली अरेस्ट कर 3.29 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने को मजबूर करने वाले आरोपितों को जमानत देकर रिहा करने से अदालतों को रोक दिया है।
शीर्ष अदालत ने आदेश दिया कि कोई भी अदालत आरोपित विजय खन्ना और अन्य सहअभियुक्तों को रिहाई नहीं देगी।
आरोपितों को अगर कोई राहत चाहिए तो वे सुप्रीम कोर्ट आ सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि असमान्य घटना के लिए असमान्य हस्तक्षेप की जरूरत होती है।
ये आदेश न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जोयमाल्या बाग्ची की पीठ ने डिजिटल अरेस्ट के मामले में स्वत: संज्ञान लेकर की जा रही सुनवाई के दौरान बुजुर्ग महिला वकील को डिजिटल अरेस्ट करके ठगे जाने का मामला उठाए जाने पर दिये।
‘असमान्य घटना के लिए असमान्य हस्तक्षेप की जरूरत’
पीठ की अगुवाई कर रहे न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि वह किसी के जीवन और स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं हैं लेकिन इस मामले में असमान्य आदेश की आवश्यकता है। ऐसे मामलों से सख्ती से निपटना चाहिए ताकी सही संदेश जाए। पीठ ने कहा कि असमान्य घटना के लिए असमान्य हस्तक्षेप की जरूरत होती है।
कोर्ट ने आदेश तब दिए जब सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट आन रिकार्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) की ओर से दाखिल हस्तक्षेप अर्जी का जिक्र किया गया जिसमें बुजुर्ग महिला वकील के साथ हुई धोखाधड़ी का मुद्दा उठाते हुए अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की गई थी।
एसोसिएशन के अध्यक्ष विपिन नायर ने कोर्ट को बताया कि बुजुर्ग महिला वकील की जिंदगी भर की जमा पूंजी चली गई है। घटना की एफआइआर के बाद जो आरोपी गिरफ्तार हुए थे वे विधायी जमानत पाकर छूट जाएंगे।
कब मिलती है विधायी तौर पर जमानत?
मालूम हो कि जब कोई आरोपित गिरफ्तार होता है और कानून में तय अवधि के भीतर उसके खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल नहीं होती है तो उसे विधायी तौर पर जमानत मिल जाती है। इस मामले में यही मुद्दा उठाया गया था।
कोर्ट ने नायर की दलीलें पर संज्ञान लेते हुए तत्काल आदेश लिखाया कि इस मामले में आरोपित विजय खन्ना और अन्य अभियुक्तों को कोई भी अदालत जमानत पर रिहा नहीं करेगी।
पीठ ने कहा कि अगर अभियुक्तों को कोई राहत चाहिए है तो वे सुप्रीम कोर्ट आ सकते हैं। विपिन नायर ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में पुलिस आरोपियों से 42 लाख रुपये वसूल करने की स्थिति में थी लेकिन ऐसे मामलों में प्रक्रियागत शून्यता है।
क्योंकि पीड़ित के खाते में रकम जमा करने के मजिस्ट्रेट के आदेश होने के बावजूद बैंक ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
इस पर पीठ ने कहा कि जल्द ही पूरे देश के लिए दिशानिर्देश जारी किये जाएंगे। अगली तारीख का इंतजार करिए।
बेखबर बुर्जुगों को निशाना बना रहे हैं ठग
नायर की दलीलों का सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी समर्थन किया। मेहता ने कहा कि उन्होंने पीड़ित बुर्जुग महिला से बात की है और पता चला कि घोटालेबाजों ने उन्हें इस तरह भरोसे में ले लिया कि उन्होंने अपने एफडी तोड़कर पैसे दे दिये।
विपिन नायर ने कहा कि ठग युवाओं को नहीं बल्कि बेखबर बुर्जुगों को निशाना बना रहे हैं और उनकी जीवनभर की जमापूंजी हड़प रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि आप चिंता मत करिए हम कुछ करेंगे। इस संबंध में निर्देश देने की जरूरत है।
इसके साथ ही कोर्ट ने मामले में न्यायमित्र नियुक्त की गई एनएस नप्पिनाई से कहा कि जल्द ही कोर्ट उनसे इस बारे में एक विज्ञापन देने को कहेगा जिसमें वे लोगों से कहेंगे कि इस तरह के अपराध के पीड़ित उनसे संपर्क कर सकते हैं ताकि इस अपराध की व्यापकता का पता चल सकेगा।
सुनवाई के दौरान एक वकील ने कोर्ट को बताया कि भारत ने साइबर क्राइम के संबंध में संयुक्त राष्ट्र संघ की संधि स्वीकार नहीं की है। इस पर पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से उस पर विचार करने को कहा। मामले में कोर्ट सोमवार 24 नवंबर को फिर सुनवाई करेगा।
डिजिटल अरेस्ट में अपराधी लोगों को कोर्ट और जांच एजेंसियों का भय दिखा कर डिजिटली प्रतिबंधित करते हैं और फिर उन्हें पैसा ट्रांसफर करने को मजबूर करते हैं।
हरियाणा के ऐसे ही एक पीड़ित दंपति की चिट्ठी पर कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की है। इस मामले में कोर्ट ने हरियाणा के अलावा केंद्र व सीबीआइ को नोटिस जारी किया था। पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट के सभी मामले सीबीआइ को देने की इच्छा भी जताई थी।
‘साइबर क्राइम के अपराधियों को नहीं मिलेगी जमानत’ – सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला |
FAQs
सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गंभीर साइबर क्राइम में शामिल आरोपियों को आसानी से जमानत नहीं दी जाएगी। ऐसे मामलों में जमानत बहुत सख्त शर्तों पर ही मिलेगी।
कौन-कौन से साइबर क्राइम इस फैसले में शामिल हैं?
ऑनलाइन फ्रॉड, बैंकिंग/UPI ठगी, सोशल मीडिया हैकिंग, साइबर बुलिंग, डेटा चोरी, महिलाओं से जुड़े साइबर अपराध, फिशिंग-स्कैम जैसे गंभीर डिजिटल अपराध।
अब साइबर क्रिमिनल को जमानत क्यों मुश्किल होगी?
क्योंकि साइबर अपराधों का असर सीधे लाखों लोगों तक पहुंचता है और अपराधी डिजिटल तरीके से सबूत मिटा सकता है। कोर्ट ने माना कि ये अपराध समाज के लिए गंभीर खतरा हैं।
क्या हर साइबर केस में जमानत नहीं मिलेगी?
नहीं, मामूली और पहली बार के अपराधों में अदालत परिस्थिति देखकर निर्णय लेगी। लेकिन गंभीर और संगठित साइबर क्राइम में जमानत लगभग असंभव होगी।
क्या पुलिस अब आसानी से गिरफ्तारी कर सकेगी?
हाँ, गंभीर साइबर क्राइम अब “गैर जमानती” की श्रेणी में माना जाएगा, जिससे पुलिस को कार्रवाई करने में आसानी होगी।
क्या डिजिटल सबूतों का महत्व बढ़ेगा?
हाँ, कोर्ट ने कहा कि डिजिटल एविडेंस (जैसे IP log, मोबाइल डेटा, बैंक रिकॉर्ड, चैट्स) को बेहद गंभीरता से देखा जाएगा।
पीड़ितों को इससे क्या फायदा होगा?
अपराधी छूटकर सबूत नष्ट नहीं कर पाएगा, और पीड़ितों को न्याय मिलने की संभावना बढ़ेगी।
क्या यह फैसला पूरे भारत पर लागू है?
हाँ, सुप्रीम कोर्ट का फैसला देशभर की सभी अदालतों पर लागू होता है।
क्या पुराने केसों पर भी असर पड़ेगा?
जहां-जहां जमानत याचिका लंबित है, वहाँ अदालतें इस फैसले को आधार मानकर निर्णय लेंगी।
क्या साइबर अपराध के आरोपी को तुरंत जमानत मिलना बंद हो जाएगा?
प्रायः हाँ। कोर्ट अब गंभीर साइबर मामलों में तुरंत जमानत देने से बचेगी।
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